महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२२॥ ☆
तां जानीथाः परिमितकथां जीवितं मे द्वितीयं
दूरीभूते मयि सहचरे चक्रवाकीम इवैकाम
गाढोत्कण्ठां गुरुषु दिवसेष्व एषु गच्चत्सु बालां
जातां मन्ये शिशिरमथितां पद्मिनीं वान्यरूपाम॥२.२२॥
सहचर बिना एक उसे चक्रवाकी
सदृश अल्पभाषी विरह वासिनी को
समझना मेरा ही हृदय दूसरा है
पड़ी दूर मुझसे प्रिया कामिनी को
प्रलंबित विरह के दिनो को बिताती
विकल वेदना से भरी यामिनी जो
मुझे भास होता है कि वह म्लान होगी
शिशिर से मथित ज्यो पद्यनी हो
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈