महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२६॥ ☆

 

शेषान मासान विरहदिवासस्थापितस्यावधेर वा

विन्यस्यन्ती भुवि गणनया देहलीदत्तपुष्पैः

सम्भोगं वा हृदयनिहितारम्भम आस्वादयन्ती

प्रायेणैते रमणविरहेष्व अङ्गनानां विनोदाः॥२.२६॥

 

या गमन दिन से धरे देहली पुष्प

को योग हित भूमि पर फिर बिछाती

विरह की अवधि के दिवस शेष

एक एक कर काटने पुष्प गिन गिन बिताती

या याद करती मेरी प्रेम क्रीड़ा ,

तथा भोग के भिन्न व्यापार सारे

जो पति विरह में सदा नारियों को

समय काटने मधुर साधन सहारे

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments