॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 1 (91-95) ॥ ☆
इस विधि इनकी सुश्रषा कर पा पुण्य प्रसाद
निज सम पा सत्पुत्र तुम करो दूर अवसाद ॥ 91॥
पत्नी सहित प्रसन्न हो सुन गुरू के उपदेश
देश काल लख विजत नृप बोले -‘‘जो आदेश ”॥92॥
तब मुनिवर नृप श्रेष्ठ सें बोले मीठे बैन
रात्रि हो गई कीजिये जाकर के अब शयन ॥ 93॥
तपोसिद्धि बल राजसी पाने हेतु समर्थ
मुनि ने वन साधन सकल दिये व्रती नृप अर्थ ॥ 94॥
कुलपति गुरू द्वारा जो नियत पर्णशाला
नवभार्या सम वास उसको बनाया ।
राजा ने रजनी कुश शयन पर बिताई
छात्राध्यन ध्वनि ने प्रात जिसको जगाया 95।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈