॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (16-20) ॥ ☆
इंद्र ने जब धनु समेटा रघु ने तब धारण किया
प्रजाहित ही धनुष – धारण की है दोनों की क्रिया ॥ 16॥
श्वेत कमल का छत्र ले हो काँस चामर की धनी
ऋतु शरद तो आई पर रघु सी नहीं शोभा बनी ॥ 17॥
चंद्र प्रति निर्मल प्रभा से रघु के आनन हास से
सभी नयनों को थी उनसे प्रति पूर्ण विकास से ॥ 18॥
हंसदल तारावली लख कुमुद को जल राशि में
भासता था रघु का यश ही है धरा – आकाश में ॥ 19॥
ईख की छाया में करती धान की रखवालियाँ
रघु के यश की कथा कहतीं कृषको की घर वालियाँ ॥ 20॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈