॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (76-80) ॥ ☆
गज की रस्सी से छिली देवदारू की छाल
कहती थी सेना के वे गज थे उच्च विशाल ॥ 76॥
फिर गिरिवासी दलों से रघु की हुई मुठभेड़
लगे बाण – पाषाण मिल चिनगारी के ढेर ॥ 77॥
रघु बाणों ने दलों को किया दीन श्रीहीन
गववाई किन्नरों से भुजबल -कीर्ति नवीन ॥ 78॥
जित ‘ उत्सव – संकेत’ गण लाये जोे उपहार
नृप गिरि दोनों ने लखा हाथों का व्यवहार ॥ 79॥
रावण उत्थित शिखर पर कीर्ति पताका गाड़
रघु गिरि से आये उतर बल से उसे पंछाड़ ॥ 80॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈