॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (61-65) ॥ ☆

 

ज्यों चंद्र को देख हर्षित उदधि उर्मिमाला उठा करता सत्कार विधु का

वैसे ही अज आगमन से मुदित भोज ने स्वतः बढ किया स्वागत अतिथि का॥ 61।

 

अगवानी कर पथ दिखा अज को जिसने विनत भाव से सच समर्पित किया जब

उस भोज की देख के भावना उसके समझे अतिथि अज को गृहस्वामी सा सब 62।

 

जहाँ पूर्व द्वारे की बेरी पै जल से भरे घट रखे गये थे भृत्यों के द्वारा

वहाँ नये भवन में था रघुपुत्र अज का मदन सदृश यौवन में आवास प्यारा ॥ 63॥

 

उसी रूपसी की प्रबल लालसा ले थे जिसके स्वयंवर में कई नृपति आये

नवोढ़ा वधू सी बड़ी देर में रात्रि, निद्रा नयन अज के सायास पाये ॥ 64॥

 

कुण्डल औं अंगराग जिसके थे घर्षित वे अज सुबह गान से गये जगाये

चारण तरूण जो थे अति वाक्पटु, उननें विरूदावली में मधुर गीत गाये ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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