॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (91-95) ॥ ☆

गुरू वशिष्ठ की बात सुन औं ऊँचे उपदेश

अज बोले – ‘‘है ठीक” पर मन में रहा न शेष ॥ 91॥

 

आत्मज देख अबोध, अज प्रियवादी महाराज ।

चित्र, स्पप्न लख इन्दु के काटे नत्सर आठ ॥ 92॥

 

पीपल  जड़ से श्शोक से, अज मन हुआ विदीर्ण

वैद्यों हेतु असाध्य भी, प्रिया मिलन हित तीर्ण ॥ 93॥

 

तब संस्कारित पुत्र को सौंप कवच औ देश

मुक्ति हेतु अज ने किया अनशन पा आवेश ॥ 94॥

 

गंगा – सरयू तीर्थ में देह त्याग के साथ, अज ने पाई अमरता मिटा हृदय का त्रास ।

अधिक कांतिमय और भी दिव्यविभा के साथ,नंदन वन क्रीड़ाभवन का तब बन के नाथ ॥ 95॥

 

आठवाँ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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