॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (31-35) ॥ ☆

 

बसंत में किंशुक कलियों के रूप थे वृक्ष में कुछ ऐसे सुहाते

जैसे कि मदमत प्रमदाओं के नख प्रियतम के तन को हैं चिन्हित बनाते ॥ 31॥

 

जो शीत प्रमदाओं को कष्टकारी थी, जघन व अधरोष्ठ को कठिन भारी

बंसत आने पै रवि ने उसको डरा हटाने की की तैयारी ॥ 32॥

 

ठिठोली करती मलय पवन से उलझाती पल्लव – कली – लतायें

नव आम्र टहनी ने कामजित के मन में भी पैदा की कामनायें ॥ 33॥

 

मधुर महकती अमराइयों में रह रह के कोकिल की प्रेमवाणी

सुनी गई जैसे मुग्ध प्रमदाओं की प्रिय मिलन की मधुर कहानी ॥ 34॥

 

पवन तरंगित लतायें उपवन में कली रदनों की छवि दिखातीं

हिला के किसलय नव भाव मुद्रा दिखा भ्रमर स्वन में गीत गाती ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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