॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (61-65) ॥ ☆
चमरमृगों को घेरे घोड़ो से, भाले से करवार उन पै दशरथ नृपति ने
राजाओं सम चमरधरी मृगों की किया श्वेत बालों रहित भूपति ने ॥ 66॥
निकट अश्व उड़ते सुघर पूँछवाले, मयूरों को उसने श्शरों से न मारा
उन्हे देश क्योंकि प्रिया के खुले केश माला सजों का था मिलता इशारा ॥ 67॥
मुगया के श्रम से उभर आये प्रश्वेद को श्शीत उस वायु ने था सुखाया
जो शीत जलकण मिली नये पल्लव को कर प्रस्फुटित बढ़ाती सुखद छाया॥ 68।
इस भाँति अपने सकल कार्य का भार दे मंत्रियों को, वे आ वन में राजा
चतुर कामिनी मृगया में खो गया, था सतत राज्य-सेवा में जो था समाया। 69।
सुदंर सुखद पुष्प-किसलय की श्शैय्या पै प्रकाशित महोषधि से दीपक की नाई
रजनी त्रियामा बिना सेवकों के अकेले विजन में ही उसने बिताई ॥ 70॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈