॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (76-82) ॥ ☆

उतर अश्व से पूंछा -‘वह कौन है’ ? तो घड़े पर टिका सिर जो उसने बताया

अस्फुट स्वरों में ‘द्विजेतर है ऋषिपुत्र वह ‘बात सुन नृप को यह समझ आया। 76।

 

‘‘मुझे पिता के पास तक पहुँचा दी जै ” – कहा उसने तो राजा बिन शर निकाले

नेत्रहीन माता-पिता पास लाकर, बता दोष निज किया उनके हवा ले ॥ 77॥

 

अतिशय दुखी दम्पती ने अधिक रों, राजा से ही बिधा शर निकलवाया

सुत दिवंगत हुआ, ऋषि अश्रुले हाथ प्रहर्ता को यह शाप रो रो सुनाया ॥ 78।

 

तुम भी मेरी भाँति पाओगे मृत्यु, प्रिय पुत्र के श्शोक में वृद्ध होके

विषधर सदृश दबके छूटे सें उससे कहा कोशलाधिप ने अपराधी होके ॥ 79॥

 

देखी नही पुत्रमुख कमल शोभा, उस मुझको यह शाप उपकार सा है

जल आग खुद खेत को है जलाती, पर करती अंकुर हित तैयार सा है॥ 80॥

 

तब कहा दशरथ ने-‘ यह वध्य जो है, -करे क्या ? ” कुपाकर मुझे यह बतायें ”

मुनि ने कहा-‘‘पत्नी सह मरण इच्छा है ”सहदाह सुतहित चिता एक बनायें। 81॥

 

राजा ने मुनि आज्ञा का करके पालन, वधपाप औं शाप को मन में धारे

सागर की बड़वाग्नि सी जलन मन रख, आ गये चरों साथ वापस सिधारे॥ 82 ।

 

नवमाँ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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