॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (41-45) ॥ ☆

पुष्पक का भय त्याग दें देव सभी निष्पाद

जो विमान निज छुपाते मेधों में चुपचाप ॥ 46॥

 

शाप नियंत्रित असुर के केश ग्रहण से मुक्त

करो अदूषित देवयिों के केशों को मुक्त ॥ 47॥

 

रावण रूपी तापसे झुलसी सुस्गण धान

को वचनामृत सींच घन से हुये अन्तर्धन ॥ 48॥

 

देवकार्य हित रत हुये जब भी विष्णु भगवान

देववृक्षों ने अंश सम किया वायु अनुयान ॥ 49॥

 

तब समाप्रिपर यज्ञ के ऋविवज विस्मय जाग

दिव्य पुरूष हुये अग्नि से प्रकट नृपति के काज ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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