॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (81-86) ॥ ☆

था सौहाद्र समान पर, राम – लखन थे साथ

तथा भरत – शत्रुघ्न का था स्नेह विख्यात ॥ 81॥

 

वायु – अग्नि में प्रेम ज्यों, चंदा और समुद्र

वैसे ही द्वय युग्म का था सनेह अति उग्र ॥ 82॥

 

चारों की तेजस्विता औं विनम्रता साथ

जनप्रिय मन मोहक थी ज्यों ग्रीष्म बाद बरसात ॥ 83॥

 

दशरथ के वे पुत्र थे शोभित, चार उदार

अर्थ कर्म काम मोक्ष के साक्षात अवतार ॥ 84॥

 

सागर पाता रत्नों से दिय स्वामी का ध्यान

त्यों प्रसन्न सुत गुणों से दशरथ पिता महान ॥ 85॥

 

भंजक दैत्य असि दन्त से ऐरावत गजराज

फलदायी गुणचार से राजनीति के काज ॥ 86॥ अ

 

चतुर्युगो के भार से ज्यों श्शोभित भगवान

विष्णु अंश चारों सुतों से त्यों नृपति महान ॥ 86॥ ब

 

दसवॉ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments