॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (16-20) ॥ ☆

कफन ओढ़ सी प्रगट हुई घन-गर्जन के साथ।

आँधी सी थी ताड़का, सहमे कुछ रघुनाथा।।16।।

 

धरे आँते धरधनी सी, उठा लट्ठ सा हाथ।

भुला सोच, वध नारि का बाण हने रघुनाथ।।17।।

 

छेद ताड़का-वक्ष को राम-बाण की मार।

असुरों के संहार हित खोल गई यम द्वार।।18।।

 

गिरी ताड़का, वन-धरा ही न हिली सह भार।

वरन बली रावण का ही डोल उठा संसार।।19।।

 

रक्त-सनी, चंदन लगी सी वह प्रमदा वाम।

राम बाण से बिंध, गई प्राणेश्वर के धाम।।20।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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