॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (71-75) ॥ ☆
क्षत्रि जाति, जिसने किया मम पितु का संहार।
से मैंने बदला लिया कुचल अनेकों बार।।71अ।।
लेकिन सोया सर्प ज्यों पा फिर दण्डप्रहार।
धनुर्भंग से मैं हुआ आहत उसी प्रकार।।71ब।।
तोड़ उसे तुमने डिगा दिया मेरा विश्वास।
तोड़ न पाये कोई नृप जिस धनु को सायास।।72।।
परशु अस्त्र धारी मेरे हैं दो शत्रु महान।
एक सहस्त्रर्जुन तथा तुम द्वितीय नादान।।74।।
अतः यदपि क्षत्रियों का मैंने किया विनाश।
किन्तु न जीता तुम्हें तो मेरा यश-उपहार।।75।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈