॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (11 – 15) ॥ ☆
सर्गः-13
देखो उछल विभाजते जल को ये गज-ग्राह।
फेन कि जिनके कान पै दिखता चमर-प्रवाह।।11।।
सर्प तरंगों दीर्घ सम वायुपान हित तीर।
आये दिखते चमकते मणि से वृहद् शरीर।।12।।
तव अधरों सी शोभती मूँगों की चट्टान।
पर तरंगहत दीखते कम हैं शंख महान।।13।।
भँवरवेग से भ्रमित धन करते से जलपान।
देख है आता मंदराचल से मन्थन का ध्यान।।14।।
ताल वृक्ष की छाँव से नीलउदधि तट हार।
दिखता दूर है, चक्र के तट ज्यों जंग प्रसार।।15।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈