॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (16 – 20) ॥ ☆
सर्गः-13
पुष्परेणु ला कर रहा तव आनन-श्रृंगार।
दिशालीक्षि यह तट पवन आकार बारम्बार।।16अ।।
तब विम्बाधर के लिये मेरे मन की प्यास।
देर न हो शायद उसे है इसका आभास।।16ब।।
लो क्षण में हम यान से गये सागर पार।
जहाँ रेत पै मोती हैं, तट तरूपूग कतार।।17।।
पीछे देखो मृगनयनि धरा हरी भरपूर।
दिखती सागर से उदित ज्यों ज्यों जाते दूर।।18।।
यह पुष्पक चलता सुमुखि मम रूचि के अनुसार।
कभी देव, घन, विहंग के पथ में कर संचार।।19।।
ऐरावत मदगंध से नभगंगा संस्कार।
वायु पोंछती स्वेद तव मुख का बारम्बार।।20।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈