॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (31 – 35) ॥ ☆
सर्गः-13
तुम से विलग वहाँ मैंने चक्रवाक का युग्म।
देखा था जो परस्पर बाँट रहे थे पद्य।।31।।
तटवर्ती यह वल्लरी जो थी तुम्हीं समान।
को रोते छूते लखन ने कराई पहचान।।32।।
ध्वनि सुन किंकिणि की मधुर जो आबद्ध विमान।
सारस गोदावरी के करते तव अगवानि।।33।।
आगे पंचवटी जहाँ रोपे तुमने आम।
आनंदित करते खड़े मृगदल मुझे ललाम।।34।।
यहीं तुम्हारी गोद में थक आखेटोपरान्त।
गोदावरी-समीर हित मिलता था एकान्त।।35।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈