॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (56 – 60) ॥ ☆
सर्गः-13
या काला गुरू से लिखित चंदन चर्चित भूमि।
कहीं मेघ-छाया सहित चंद्र-ज्योत्सना वाम।।
कहीं शोभती शरद की मेघ पंक्ति सी साफ।
जिसके बिखरे जाल से दिखता है आकाश।।56।।
और कहीं भस्मी लगा शिव का रूप विशाल।
जिनकी ग्रीवा पै सजी कृष्ण-नाग की माल।।57।।
गंगा-यमुना मिलन स्थल में कर के स्नान।
मृत्यु बाद पाता हरेक प्राणी पद निर्वाण।।58।।
श्रृंगवेरपुर यह वही जहाँ थे मिले निषाद।
जहाँ मौलिमणि त्याग कर किया जटाँ का ताज।।59अ।।
जहाँ देख यह रो पड़े थे सारथी सुमंत्र।
कह- ‘केकई पूरी हुई तेरे मन की अन्त’’।।59ब।।
मूल प्रकृति ही बुद्धि को करती है उत्पन्न।
सांख्य ज्ञान की मान्यता करती यह उपपन्न।।60अ।।
जिसके पद्यरज लगाती यक्षिणि कर स्नान।
त्योंहि मानसर सरयू का है उद्गम स्थान।60ब।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈