॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (36 – 40) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
हतप्रभ राजा राम ने जो थे बहुत उदास।
बुला दुखी अनुजों को तब की उनसे यों बात।।36।।
मुझ पावन सदाचारी से भी रविकुल-सम्मान।
दर्पण सा क्यों हो चला वाष्पवायु से म्लान।।37।।
तैल सा जल मैं फैलता जन में मम अपवाद।
मुझे सहन नहीं ज्यों प्रथम बंधन को गजराज।।38।।
धोने अपयश सिया का करना होगा त्याग।
पितृाज्ञा से राज्यश्री का ज्यों था परित्याग।।39।।
ज्ञात मुझे सीता तो है अति पवित्र निष्पाप।
किन्तु मुझे हैं कोंचता झूठा लोकापवाद।।40।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈