॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (30 – 35) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -15
वाल्मीकि ने जनक और दशरथ मैत्री-भार।
सीता पुत्रों का किया सविधि जात संस्कार।।31।।
दोनों पुत्रों को दिया क्रमिक कुश और लव नाम।
क्योंकि प्रसव पीड़ा शमन में वही आये थे काम।।32।।
वेदों का अध्ययन किया दोनों ने सुख मान।
बड़े हुये तो वाल्मीकि रामायण का गान।।33।।
राम-चरित का गान सुन मिटा सिया सन्ताप।
पुत्रों का मुख देख कुछ घटी विरह की ताप।।34।।
भरत-लक्ष्मण-शत्रुध्न ने भी त्रेताग्नि समान।
रघुकुल में पैदा किये दो-दो पुत्र महान।।35।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈