॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (96 – 103) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -15
लक्ष्मण बिन रह राम गये सिर्फ तीन चतुरांश।
विकल रहे ज्यों धर्म हो एक पाद विकलांग।।96।।
कुश लव थे अंकुश सदृश जहाँ शत्रु गजराज।
अतः कुश और शरावती का दिया उन्हीं को राज।।97।।
उत्तर प्रति फिर चल पड़े सब अनुजों के साथ।
चले राम जहाँ, त्याग गृह थी अयोध्या भी साथ।।98।।
अश्रु सिक्त था मार्ग वह चले जहाँ रघुनाथ।
वानर असुरों ने किया वहाँ भी उनका साथ।।99।।
भक्तों पर कर के कृपा भगत-वछल-श्रीराम।
स्वर्गारोहण हित किया सरयू को सोपान।।100अ।।
जो सरयू में नहाता जाता सीधे स्वर्ग।
हो उसका संसार में चाहे कोई भी वर्ग।।100ब।।
सरयू में मेला लगा पुण्य प्राप्ति की बात।
गोप्रतीर्थ के नाम से जग में हुई विख्यात।।101।।
वानर-भालू ने किया देव रूप जब प्राप्त।
किया राम ने अयोध्या स्वर्ग रूप संज्ञात।।102।।
रावण का वध, विष्णु ने राम के रूप में धर, जगभार मिटाया,
भेज विभीषण को दक्षिण हनुमान को उत्तर ओर पठाया।
कर जग का कल्याण जरूरी अपना प्रण संपूर्ण निभाया।
होकर अन्तर्धान, स्वरूप को राम ने विष्णु के रूप मिलाया।।103।।
पन्द्रहवां सर्ग समाप्त
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈