॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (31 – 35) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
पथ खोजने सैन्य विन्ध्यावनों में बँट गई अनेकों समूहों में खुद ही।
करते महानाद देखा सरीखी गुफाओं को गुंजित किया सघन वन की।।31।।
चल धातुरागों पै रथ-चक्र रंजित हय-गय निनादों में ध्वनि वाद्य मिश्रित।
प्रभु कुश किरातों से उपहार पूजित, बढ़े विन्ध्य वन-भाग को कर विमर्दित।।32।।
करते हुए पार रेवा को विन्ध्या में जो प्रतीची वाहिनी गंगा है ख्यात।
गज सेतु पर सुशोभित कुश को झलते, नभ में बहुत शुभ्र चँवर से हुये ज्ञात।।33।।
कपिल-क्रोध-शापित स्वपुरखों के भस्मावशेषों की जिस जल ने तारा था उनको।
नौकाओं से क्षुब्ध गंगा-सलिल को कुश ने नमन किया अतिभाव भय हो।।34।।
कर पार पथ, पहुँच कुश सरयू तट जहाँ रघुकुल नृपों ने किये यज्ञ भारी।
लखे यज्ञ-स्तम्भ औं वेदिकायें जो थी सैकड़ों में परम मनोहारी।।35।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈