॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (21 – 25) ॥ ☆
सर्ग-19
बिता रात्रि अन्यत्र थक, प्रात आकर सुरति चिन्ह धारें सता खण्डिता को।
क्षमा मांग फिर शिथिल व्यापार करके व्यथित करता अतृप्ति दे खुद दुखी हो।।21।।
जब कभी वह स्वप्न में नाम लेता किसी और का, तो दुखी नायिकायें।
बदल करवटें रो तिरस्कार करती थी, उसको पलंग पै जता निज व्यथायें।।22।।
पा दूतियों से इशारा स्वगृह तज रची पुष्पा-शैय्या के कुंजों में जाता।
भयभीत, पत्नी कुपित होगी, फिर भी सदा दायिों संग भी मिलता-मिलाता।।23।।
सुन नाम प्यारी का तुमसे हमारा भी हो भाग्य ऐसा-ये होती है इच्छा।
यों नाम सुन उस विलासी से कोई उपालम्भ दे रमणी लेती परीक्षा।।24।।
झरे केश कुसुमों व विच्छिन्न हारों, टूटी करघनी पाके गुँझटे शयन में।
आलक्तक लगी चादरों से था दिखता वे रतिबंध भोगे जो थे उसने उनमें।।25।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈