॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (26 – 30) ॥ ☆
सर्ग-19
प्रिया चरणों में जब आलक्तक लगाता, वसन प्रियतमा का अगर उधड़ जाता।
जघन देखने में ही वह डूब जाता चरण में सही ढंग न रंग लगा पाता।।26।।
चुम्बन न दे अपना मुँह मोड़ लेती, हटाते अधोवस्त्र कर रोक लेती।
असहयोग भी अग्निवर्ण को मगर नित बढ़ावा ही देता था, बस नेति नेति।।27।।
जब नारियां दर्पणों से निरखती सुरत चिन्ह, वह पीछे छुप बैठ जाता।
दिखा अपना प्रतिबिम्ब दर्पण में उनकी, स्वतः ‘ही’-‘ही’ करके प्रिया को लजाता।।28।।
निशान्ते शयन छोड़ते अग्निवर्ण से रमणियाँ थी चुम्बन की करती प्रतीक्षा।
कि जिसमें गले के सुकोमल भुजाओं, चरणतल पै चरणों की होती अपेक्षा।।29।।
उसे शक्र से भव्य निज राजसी वेष भी कभी दर्पण में भाया न ऐसे।
वदन पै बने दन्तक्षत औ’ नखक्षत को भूषण सदृश देख होता था जैसे।।30।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈