श्री आशिष मुळे
☆ कविता ☆ “रंगरेजा” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
इंसान है तो रंग पाए
रंग है तो इंसान होए
कायनात हर हर रंग रंगाए
रंगरेजा हर हर मन भिगाए
कोई इश्क में लाल देखूं
कही सुबह की लाली देखूं
कोई यादों में रंगता देखूं
कहीं खोया नीला आसमां देखूं
बेरंग होती हरियाली में
जान लाता बसंत देखूं
नई हरियाली में शान लाते
ये फूलों के रंग बसंती देखूं
सुबह सब रंग लेकर आते देखूं
निशा सब रंग लेकर जाते देखूं
तुम भी आए हो सब रंग लेके
जाने से पहले बनाया चित्र देखूं
रंगरेजा का ये खेल देखूं
हर रंग में जलती ये होली देखूं
फिर राख से भी रंगते हुए
मधुबन में हँसता युगंधर देखूं
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈