प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ “दोहा मुक्तक प्रेम के…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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(१)
प्रेम मधुर इक भावना, प्रेम प्रखर विश्वास।
प्रेम मधुर इक कामना, प्रेम लबों पर हास।
प्रेम सुहाना है समां, है सुखमय परिवेश।
पियो प्रेमरस डूबकर , रहे संग नित आस।।
(२)
प्रेम ह्रदय की चेतना, प्रेम लगे आलोक।
प्रेम रचे नित हर्ष को, बना प्रेम से लोक।।
प्रेम एक आनंद है, जो जीवन का सार,
प्रेम राधिका-कृष्ण है, दूर करे हर शोक।।
(३)
राँझा है, अरु हीर है, प्रेम मिलन है, गीत।
प्रेम सुखद अहसास है, प्रेम मनुज की जीत।
प्रेम रीति है, नीति है, पावनता का भाव,
प्रेम जहाँ है, है वहाँ चंदा की मृदु शीत।।
(४)
प्रेम गीत, लय, ताल है, प्रेम सदा अनुराग।
प्रेम नहीं हो एक का, प्रेम सदा सहभाग।
पीकर मानव प्रेमरस, जग से रखे लगाव,
प्रेम मिले तो सुप्तता, निश्चित जाती भाग।।
(५)
खिली धूप है प्रेम तो, प्रेम सुहानी छाँव।
पावन करता प्रेम नित, नगर, बस्तियाँ, गाँव।
पीता है जो प्रेमरस, वह पीता उपहार,
प्रेम भटकते को सदा, देता है नित ठाँव।।
(६)
प्रेम सदा अमरत्व है, प्रेम सदा गतिमान।
प्रेम पियो, फिर नित जियो, पूर्ण करो अरमान।
प्रेम बिना अवसान है, प्रेम बिना सब सून,
प्रेमपान करके मनुज, पाता है नव शान।।
(७)
प्रेम मिले तो ज़िन्दगी, पाती है उत्थान।
प्रेम मिले तो ज़िन्दगी, पाती सकल जहान।
प्रेम एक है चेतना, प्रेम ईश का रूप,
जो पीते हैं प्रेमरस, पाते नवल विहान।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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