श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(आज प्रस्तुत है  श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  की कविता देवालय . ग्राम्य पृष्ठभूमि में बने देवालय का अतिसुन्दर शब्दचित्र . )

 

☆ देवालय ☆

 

गाँव का मंदिर, छोटी – सी मूरत

और विशाल सा प्राँगण

ना मूर्ति स्वर्ण – रजत से जड़ित

ना वहाँ दर्शन की भगदड़

शांत, रम्य, जागृत, अद्भुत

 

केवल फूलों का सुवास

तीर्थ में तुलसी का अमृत जल

ना भरभर फूलों के हार

ना नारियलों की बौछार

ना मन्नतों से पटी दीवार

ना अमूल्य उपहार

तेजस्वी गर्भगृह, शीतल सभागृह

 

किनारे बिछी रंगीन दरी

उसमे विराजित ग्रामजन

ढोलक की थाप, मंजरी का हल्का सा नाद

ना लाऊडस्पीकर में बजते भजन

ना होते रोज के होम हवन

फिर भी सुगन्धित, प्रफुल्लित आलय

 

मजबूत स्तम्भ देते जिसे आधार

तालों में ना कैद मूरत

बिखरे पड़ते हो जहां कभी अनायास सूखे पत्र

जैसे पुरखे भी लेना चाहें पुनः शरण

इतना शांत आलय

सच्चे अर्थ में देवालय ।

 

© विशाखा मुलमुले  ✍

पुणे, महाराष्ट्र

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