डॉ अंशु शर्मा
(डॉ अंशु शर्मा नई दिल्ली की निवासी, एक सरकारी सेवा निवृत्त एलोपैथिक चिकित्सक हैं। उन्होंने दिल्ली के प्रख्यात लेडी हार्डिंग कॉलेज से स्नातक और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की, तत्पश्चात् सीजीएचएस में क़रीब ३० वर्ष, एवं केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में Public health officer के पद पर ९ वर्ष कार्यरत रहने के बाद २०२२ में निजी कारणों से सेवानिवृत्ति ले ली थी। उन्हें द्विभाषीय कविताये ( हिन्दी और अंग्रेजी में ) लिखने में क़रीब १२ वर्षो का अनुभव हैं और उनकी हिन्दी कविताओं की पुस्तक “अंतर्मन के संवाद” २०२० में प्रकाशित हो चुकी है।)
☆ ~ ‘बदली सी परछाईं…’ ~ ☆ डॉ अंशु शर्मा ☆
(लिटररी वारियर्स ग्रुप द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत कविता। प्रतियोगिता का विषय था >> “परछाइयां” /Shadows”।)
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मेरी परछाईं कुछ बदल सी गई है,
यह भी ज़िंदगी की मानिंद कुछ ठहर सी गई है ।
अब मैं भी अपनी परछाईं को अधिक अनुभव कर पाती हूँ,
आत्मचिंतन के लिये समय निकाल पाती हूँ।
पहले सबके खुश होने का इंतज़ार रहता था,
तब सुपरवुमन बनने का जुनून रहता था।
अब मैंने अपनी गति से समझौता कर लिया है,
सबको हर वक्त खुश न रख पाने के भाव को मान लिया है
पहले मेरा अपने शरीर के हर उतार- चढ़ाव पर ध्यान रहता था,
अब मन के हर कोने में झांकने का प्रयास है बना रहता।
मैं कब उम्र के इस मुक़ाम पर आ पहुँची , पता ही नहीं चला,
कब मेरी परछाईं मुझे पीछे छोड़ आई, पता ही नहीं चला।
कब ये वक़्त की गहरी लकीरें , चेहरे पर छा गयीं,
कब रिश्तों की नाज़ुक ज़ंजीरें, हाथ छुड़ा आगे निकल गईं।
कहाँ रह गए सपनों से सुहाने वो हसीन पल,
कब बदला सब, समझा नहीं अंतर्मन ये कोमल।
शायद समय का नियम है ये पूरा बदलाव ,
पर मन कहाँ माने, यह सूना सा ठहराव ।
तलाशता रहता है वही पुरानी कहानी, वो प्यारी अंगड़ाई,
वो मीठी सी चुभन, वो लम्हे, वो भावनाओं की गहरायी।
किंतु, आज तो हुई अपनी ही परछाईं पराई,
मैं ख़ुद बदल गई या फिर हम से सभी लोगों की है क़िस्मत यही ।
आज हो गई है अपनी ख़ुद की परछाईं मुझसे अनजान,
और लगती है कुछ अजनबी सी, मुझसे पराई!
कल जो थी रौशनी में जगमग, आज है अंधेरे में गुम तन्हाई,
जिन साथियों संग चली थी मैं, पीछे चली थी परछाई ।
आज उन सबके साथ हुआ मेरा, समय का उलटफेरा,
परछाई भी नहीं देती साथ, बदलाव का रंग ऐसा बिखेरा ।
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~ डॉ अंशु शर्मा
© डॉ अंशु शर्मा