श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आज प्रस्तुत है उनकी नवरात्रि पर नवसृजित विशेष कविता “नवरात्रि का अशक्त जागरण”

काव्य भूमिका: 

नवरात्रि का पावन पर्व आते ही सर्वत्र नारी को सम्मानित किया जाता है. उसका गुणगान किया जाता है परंतु क्या यह सभी स्त्रियों के साथ हो पाता है. एक नारी महलो वाली तो दूजी फुटपाथ आश्रयवाली, एक को खाने की कमी नहीं तो दूजी को मिलने की आशा नहीं. आज नारी सा सम्मान हो तो दूसरी औरतों के अपने घर ही नहीं, ऐसी परिस्थिति में ऐसे पर्वों पर नारियों को सम्मानित, गर्वित किया जाता है तो मेरी आँखों के सामने कुल नारी शक्तियों के अस्सी प्रतिशत वे चेहरे घूम जाते हैं. जो सबला तो है पर अबला बन पड़ी है. एक नवरात्रि पर्व में हमने देखा कि दुर्गा स्थापित मंच के एक ओर एक अबला हाथ पसारे भीख माँग रही है और दूसरी और नारी शक्ति का खोखला जागरण हो रहा है. कितनी विसंगती है. यह देख ऐसे मंच के कार्यक्रमों पर हँसी छूटती है और स्त्रीशक्तिपीठ की ओर पीठ करने का मन हो जाता है.  अब तो ‘नारी सर्वत्र पूजते’ इस उक्ति को इतना गढ़ा गया है कि नारी को भी इससे घृणा आने लगी है. इन विचारों को व्यक्त करती व्यंग्य रचना उतर आई, वह आपके सामने प्रस्तुत है.

 – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

 

☆ नवरात्रि का अशक्त जागरण

 

हे माँ आदिशक्ति !

तू अचानक सबको क्यों जगाती है?

नवरात्रि के जब दिन आए,

तब सबको तू याद क्यों आ जाती है?

 

अब नारी शक्ति का होगा बोलबाला,

हो बच्ची, बालिका, सबला या अबला,

नौ रोज नारियों के भाग जाग जाएँगे,

सभी को माता-बहन कहते जाएँगे,

पूजा की थाल भी सजेगी,

माता-बेटी-बहन की पूजा भी होगी,

ठाठ-बाट में समागम होंगे,

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सब कहेंगे,

नारी को हार-फूल से पुचकारेंगे,

नवदुर्गा, नवशक्ति नव नामकरण करेंगे,

कहीं गरबा तो कहीं डांडियाँ बजेगा,

माँ शक्ति के नाम कोई भोज तजेगा,

रोशनाई होगी, होगी ध्वनि तरंगे,

तीन सौ छप्पन दिन का नारी प्रेम

पूरे नौ दिन में पूरा करेंगे,

आरती कोई अबला या सबला उतारेगी,

अपने-आपको धन्य-धन्य कहेगी,

हर नारी नौ दिन जगत जननी कहलाएगी,

बस! नौ दिन ही तू याद सबको आ जाएगी.

 

परंतु ?

हे माँ आदिशक्ति!

नौ दिन का तेरा आना,

फिर चले जाना,

दिल को ठेस पहुँचाता हैं,

नौ दिन के नौ रंग,

दसवे दिन बेरंग हो जाते हैं

और भूल जाते हैं सभी,

तेरे सामने ही किए सम्मान पर्व.

अगले दिन पूर्व नौ दिन की नारी,

हो जाती है विस्थापित कई चरणों में,

कभी दहलीज के अंदर स्थानबद्ध,

देहलीज पार करें तो जीवन स्तब्ध,

दिख जाती है कभी दर-सड़क किनारे,

पेट के सवाल लिए हाथ पसारे,

कभी बदहाल बेवा बन सताई,

तो शराबी पति से करती हाथा-पाई,

कही झोपड़ी में फटे चिथड़न में,

एक माँ बच्चे को सूखा दूध पिलाती,

बेसहारा औरत मदद की गुहार किए

चिलचिलाती धूप में चीखती-चिल्लाती,

कभी तो रोंगटे खड़े हो जाते है,

जब अखबारवाले तीन साल की मासूम को

बलात्कार पीड़ित लिख देते हैं,

आज दो टूक वहशी-असुर,

न जाने किस खोल में आएँगे,

कर्म के अंधे वे सब के सब

न उम्र का हिसाब लगाएँगे,

हे शक्तिदायिनी!

माफ करना मुझे,

मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक पता नहीं,

तेरे अस्तित्व पर आशंका आ जाती है,

सुर में छिपे महिषासुरों को हरने

क्यों कर न तू आ पाती है?

आज की नारी का अवतार तू,

हो सकती ही नहीं,

नहीं तो चंद पैसों के लिए,

दलालों के हाथ बिकती ही नहीं,

नारी शक्ति तेरी हार गई है,

सुनकर संसार की बदहालात को

कोख में ही खुद मिट रही हैं,

कुछ लोग तो जानकर बिटिया,

कोख में मार देते हैं,

शायद भविष्य के डर से,

जन्म से पहले ही स्वर्ग भेज देते हैं,

क्या उनका यह सोचना गलत है,

यदि हाँ!

तो तेरा होना भी गलत है.

लोगों की सोच बोलो कैसे बदलेगी?

फिर दिन बीत जाएँगे

नवरात्रि का अशक्त जागरण,

दुनिया पुन: पुन: खड़ा कर जाएगी.

हे ! माँ आदिशक्ति

तू फिर सबको क्यों जगाती है,

नवरात्रि नारी सम्मान का पर्व आया,

तू सबको याद क्यों दिलाती है

फिर वही रंग और बेरंग का,

डांडिया खेल शुरू कर जाती है,

नवरात्रि के दिन जब आए,

तब सबको क्यों याद आ जाती है?

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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काव्य तो बढिया है आज की परिस्थिति पर सटीक टिप्पणी करता हो समाज की घटनाओं का बिंब शब्दों हे निखरता है आप एक नवकवि की तैयिरी में हैं लेकिन मेरी प्रामाणिक राय है कि आजकल कामकाजी और समयानुकूलता एवं कार्यबहुलता व हमय की कमी मोबाईल स्वारी के कारण कितने लोग मन लगाके इतना सुंदर काव्य मन लगाकर फढते होंगे कितने पाठक अभिप्राय दररोज करते हैं तो इसका उतर नहीं होगा मेरी आपको सस्नेह सलाम रहेगी कि काव्य की लंबाई नहीं चौडाई बढाओ छोटा फटाका भी बडा धमाका म्हणा देता है काव्य अगर खंड या गीति एवं महाकाव्य हो तो अलग… Read more »

Sunil p kadu

खूप छान सुंदर आणि वास्तविक

Allabaksh mulani

बहुत अच्छा सर जी

Akilkhan biyawali

अति उत्तम रचना बहुत खूब सर जी अभिनंदन। ।अकिल खान बियावली जलगाव महाराष्ट्र।।।।