सुश्री चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश”

(आदरणीया  सुश्री चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश” जी  कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों / अलंकरणों  से  पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपकी रचनाएँ कई  राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं  में सतत प्रकाशित होती रहती हैं। समय समय पर आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण। आप “भाषा सहोदरी हिन्दी” – की महासचिव हैं एवं गत वर्षो से “भाषा सहोदरी हिन्दी” द्वारा हिन्दी के प्रचार व प्रसार में निरंतर प्रयासरत  हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा “कोरोना क्या बिगाड़ लेगा?“। ) 

☆कोरोना क्या बिगाड़ लेगा ?☆ 

चाहे बड़का “विहान” कॉलिज से घर लौटता हो,चाहे छुटकू “ईशान” स्कूल से पसीने से सराबोर आता हो, या फिर कोचिंग क्लास से “इशिता” बाहर से जब भी जो आये सीधा फ्रिज की ओर ही भागना और अपनी-अपनी चिल्ड बॉटल, निकालना और गट गट कर एक ही साँस में पी जाना…

माँ का अक्सर बोलते ही रह जाना “सर्द गरम हो जाएगा खांसी जुखाम पीड़ा देगा.. पर सुनता कौन है… माँ” कब बोलती चली गई, पानी की घूंट के साथ माँ की परवाह भी घटक घटक… संगीता को अक्सर यूँ ही बच्चों के साथ जूझना पड़ता था।

मगर आजकल कोरोना काल में परिस्थिति कुछ बदली सी है, ठंडे पानी से ऐसा परहेज तो पहले देखने को नहीं मिला पीना तो दूर की बात अब कोई अपनी बॉटल भी नहीं संभालता…

गरम पानी से बच्चों का अथाह प्रेम संगीता को सकून तो देता था पर गरमी का कोप भी उसके मन मस्तिष्क पर हावी था।  पर संगीता मन ही मन आश्वस्त थी कि चलो अच्छा है, बच्चे स्वयं को सयंम बरतते हुए “दादी माँ” की कही बात का कड़ाई से पालन तो कर रहें हैं कि “कोरोना काल” में खांसी जुखाम को होने ही मत देना बस फिर देखना।

कोरोना क्या बिगाड़ लेगा।

 

© चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश”

5 ए / 11040 गली नम्बर -9 सत नगर डब्ल्यू ई ए करौल  बाग़ न्यू दिल्ली – 110005

8383096776, 9560660941

ई मेल आई डी– [email protected]

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना