सुश्री हरप्रीत कौर
(ई- अभिव्यक्ति में उज्जैन से प्रसिद्ध कवियित्री एवं शिक्षिका सुश्री हरप्रीत कौर जी का हार्दिक स्वागत है। आप मुख्यतया सामायिक समस्याओं और अध्यात्मिक विषयों पर लिखना पसंद करती हैं। पुस्तकें पढ़ना और संगीत सुनना आपकी प्रिय अभिरुचि है। फिल्हाल कानपुर से लेखनी में सक्रिय हैं ।आज प्रस्तुत है अभिभावकों एवं छात्रों पर आधारित एक विचारणीय कविता ” अंकों का खेल”।)
☆ कविता ☆ अंको का खेल ☆
क्यों हो रहा समाज संवेदनहीन,
रिश्तों में बढ़ रही दूरियाँ,
बचपन हो गया भावनाओं से विहीन.
इस अंधी दौड़ में बच्चों संग
भाग रहे अभिभावक
जिंदगी बन कर रह गयी
“अंको का खेल”
कोई पास कोई फेल.
हर पालनहार का बस स्वपन यही
मेरे बच्चे के नब्बे प्रतिशत अंक आने चाहिए,
उसे जिंदगी में पैसा बहुत कमाना चाहिए.
ना बन पाए वो आइंस्टीन या कलाम तो क्या
मदर टेरेसा और स्वामी विवेकानंद में
अब हमारी दिलचस्पी कहाँ,
मेरे बच्चे के नब्बे प्रतिशत अंक आने चाहिए
उसे जिंदगी में पैसा बहुत कमाना चाहिए
फिर क्यों हम शिकायत करते हैं
बच्चे अब मर्यादाओं का पालन
नहीं करते है.
किताबों में खो गया बचपन
जूझता रहा अंको के खेल से
संवेदनाओं से हो के दूर
हम सभी है मजबूर
कहलाते हम उस सभ्य समाज का हिस्सा
जहाँ हो रहे हम अपनों से दूर
आहिस्ता आहिस्ता.
© सुश्री हरप्रीत कौर
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
bahut he umda..