प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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सिहर उठता हूं नारी-उत्पीड़न देखकर।
दहल उठता हूं नारी प्रति शोषण देखकर।।
कहीं दहेज है / कहीं घरेलू हिंसा है
कहीं बलात्कार है,
धुँआ-धुँआ-सी नारी ज़िन्दगी।
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कहीं जघन्यता के समाचार हैं
कहीं छेड़खानी से भरे अख़बार हैं
सिहर उठता हूं निर्भया के दर्द को लेखकर।
सिहर उठता हूं नारी-दुर्दशा को देखकर।।
कैसा आलम है, कैसा मौसम है
चारों ओर है बस दरिंदगी।
धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।।
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कोलकाता अस्पताल की भयावहता
हृदयविदारक हालात
चीखती-चिल्लाती एक नारी
तंत्र के मुँह पर तमाचा
व्यवस्था की हक़ीक़त का ख़ुलासा
भारी शोरशराबा,आंदोलन
हाथ की आई शून्य
धुआँ धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।
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कहते हैं देवी,पर वह पीड़ित है।
पूजते हैं हम, पर वह शोषित है।।
उसकी काया बनी भोग का सामान है।
गिरता जा रहा है,सम्मान है।।
बढ़ती जा रही है देखो ज़िन्दगी।
धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
(मो.9425484382)
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