श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
( आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस के अवसर पर उनकी विशेष रचना “ काव्यधारा ”। )
आत्म परिचय
चित्रकार नहीं फनकार है हम, शब्दों से चित्र बनाते हैं।
रंग, तूलिका को छुआ नहीं, कलमों से कला दिखाते हैं।
रचना में शब्द हैं रंग भरते, इस कला को नित आजमाते हैं
अपना परिचय क्या दूं सबको, कुछ भी कहते शरमाते हैं।
पढ़ना लिखना है शौक मेरा, हम आत्मानंद कहाते हैं।
☆ अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष – काव्य धारा ☆
कल्पना के लोक से, शब्द का लेकर सहारा।
रसासिक्त होकर भाव से, बन प्रकट हो काव्यधारा।
गुदगुदाती हो हृदय को, या कभी दिल चीर जाती।
या कभी बन वेदनायें अश्क आंखों से है बहाती।
कविता ग़ज़ल या गीत बन, नित नये नगमे सुनाती।
लेखनी से तुम निकल कर, पुस्तकों में आ समाती।
नित नयी महफ़िल सजाती, श्रोताओं के मन लुभाती।
काव्यधारा काव्यधारा, अनवरत तुम बहती जाती।
देख कर तेरी रवानी, कितने ही दिवाने हो गये।
बांह में तेरी लिपट, ना जाने कितने सो गये।
काव्यधारा याद तेरी, कुछ को महीनों तक रही।
चाह में तुमसे मिलन की, आस दिल में पल रही।
इक आस का नन्हा दिया, इस दिल में अब तक जल रहा।
खुद डूबने की चाह ले कर, तेरे ही किनारे पर चल रहा।।
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
सर्वाधिकार सुरक्षित
22-4-2020
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