सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”
( सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एच आर में कई प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त एच. आर. प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित । आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं में भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है। आज प्रस्तुत है उनकी एक सार्थक एवं प्रेरक कविता – इक कदम और बढ़ाएँ )
? इक कदम और बढ़ाएँ ?
चल उठ इक कदम और बढ़ाएँ,
नए सवेरे फिर से ढूंढ़ लाएँ,
बीत गयी जो वो बात पुरानी,
अब नये आयाम संजोएँ,
रह गयी जो योजनाएँ अधूरी,
उनको फिर नये सिरे से पिरोएँ,
अफ़सोस है जो वक़्त हो गया ज़ाँया,
मिली सीख से क्यों ना दर्द की सी लाएँ,
वक़्त जो अपनों के साथ है गुज़ारा,
क्यूँ ना उसको अनमोल धरोहर बनाएँ,
साथ रहकर भी बाहर जाने की इच्छा,
इस तृष्णा की वास्तविकता ज़रा टटोली जाए,
जो महत्वत्ता पता चली है जीवन की,
उसको जीवन भर का आधार क्यूँ ना बनाएँ,
जीवन में किस की है असल जरुरत,
उसका आंकलन फिर से किया जाएँ,
वक़्त होकर भी वक़्त को कोसना,
असली उद्देश्य को फिर से जाँचा जाएँ,
मन तो है चंचल तितली की तरह,
स्थिर मन से नए दृष्टिकोण समझे जाएँ,
वक़्त है नए सिरे से प्रारम्भ करने का,
अबकी बार त्रुटिरहित संसार संजोया जाएँ,
कर लो खुद से इक वादा आज,
कि नयी भोर को उमंगो से भरा जाएँ,
चल उठ इक कदम और बढ़ाएँ,
नए सवेरे फिर से ढूंढ़ लाएँ.
© सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान ”
पुणे, महाराष्ट्र
अच्छी रचना
धन्यवाद आपका !