सुश्री वंदना श्रीवास्तव

(ई-अभिव्यक्ति में सुश्री वंदना श्रीवास्तव जी का स्वागत।)

संक्षिप्त परिचय 

जन्मस्थान- लखनऊ, उत्तर प्रदेश (विगत 35 वर्षों से मुम्बई, नवी मुम्बई मे निवास)

शिक्षा- परास्नातक अर्थशास्त्र, लखनऊ विश्वविद्यालय

कई वर्षों तक आल इंडिया रेडियो लखनऊ केंद्र के विविध कार्यक्रमों से सम्बद्धता, देश की विविध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर लेख, कहानियाँ, लघुकथाएं, कविताएँ और गीत प्रकाशित, साझा द्वै अन्तर्मन के अतिरिक्त कई चर्चित साझा संकलनों मे रचनाएँ समाहित। कई मंचीय कवि सम्मेलनों मे भागीदारी। 

सम्प्रति- स्वतन्त्र लेखन

☆ कविता – ओ मेरे जनक☆ सुश्री वंदना श्रीवास्तव ☆

ओ मेरे जनक…

तुमने फिर से मुझे चिड़िया कह कर पुकारा!!

मुझे याद है, जब मैं नन्ही सी चिड़िया..

आंगन में फुदकती फिरती थी,

तुमने मुझे अपनी गोद में बिठा..

आसमान की ओर उंगली दिखा कर कहा था..

‘तुझे उड़ना है..

ये अनन्त आसमान तेरा है, अनन्त उड़ानों के लिए’…

तब मेरी आंखें जगमगा उठी थी,

मेरे पंख उत्साह से फड़फड़ा उठे थे।

लेकिन तब मैं कहां जानती थी,

कि जैसे ही पंख पसार कर उड़ने की चेष्टा करूंगी,

उस अनन्त आकाश में बाड़ लगा दोगे,

मेरे पंख थोड़े से नोच दोगे तुम!!!

 

रटे-रटाए पाठ मैं जब फटाफट बोलती जाती थी,

स्कूल मे सिखाई गई कविताएं

 मटक-मटक कर सुनाती थी,

तुम मुग्ध हुए जाते थे…

मेरी विद्वता और विलक्षणता पर,

लेकिन जैसे ही मैने स्वयं के..

दो शब्द बोलने चाहे,

उन रटी हुई परिभाषाओं से हट कर,

अपने वाक्यांश देने चाहे,

तुमने चुपके से मेरी जीभ कुतर दी,

मेरे शब्द कोष के कितने ही पन्ने फाड़ लिए।

 

तुम ही तो थे न..

जो मुझ पर वारे-न्योछारे जाते थे,

अपनी ‘कोहनूर’ के मूल्यांकन को दूसरों पर छोड़ दिया,

जिन्होने मेरा मनोबल भीतर तक तोड़ दिया।।

 

अब अगर चिड़िया कह कर बुलाना हो तो पहले,

कानों में बालियां डालते वक्त..

ये मंत्र भी फूंकना,

कि गलत सुन कर मुझे चुप नहीं रहना है,

आंखों में काजल के साथ सपने देखने की हिम्मत भी भरना,

सीने से लगाना तो इतना साहस भर देना,

कि उन्हें  पूरा कि जिद खुद से तो कर पाऊं,

इतना आत्मसम्मान भर देना मुझमें,

कि जो हूं वही बन कर जी पाऊं।

 

इतना कर सको मेरे जनक..

तो ही मुझे चिड़िया कह कर बुलाना..

वरना अब से मुझे चिड़िया मत कहना!!!

© सुश्री वंदना श्रीवास्तव   

नवी मुंबई महाराष्ट्र 

ई मेल- vandana [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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