श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आज प्रस्तुत है उनकी  कविता “ कोरोना की हार हो।)

☆  कोरोना की हार हो ☆

आज गतिहीन देश को

शांति से गति दो

संबल मिलेगा पुन: पुन:

खुद को घर में रहने दो।

यह शांति और

मानवता का इम्तिहान है

जीतना होगा इसे हमें

एकता के दर्शन दो।

दुश्मन दर पे है खड़ा

रहेगा कुछ दिनों तक अड़ा

मिटाने को इसे यहाँ से

सब्र की ढाल दो।

कुछ पल अपनों से दूरी

है सबकी मजबूरी

इस मजबूरी के अस्त्र से

शत्रु पर मात दो।

दुश्मन बड़ा दक्ष है

हमपर गढ़े अक्ष है

इसे नजर न आए

इसे तड़प के मरने दो।

खुद को संभालो

औरों को बचालो

अपने से न फैले कोरोना

इसे ही दूर खड़ा कर दो।

खाना जब न मिले बैठकर

जवानों को याद करो

दो निवाले तो अपने मुख में

शासन को न ताना दो।

पुलिस, डाक्टर, नर्स  औ’ कर्मचारी

निभा रहे अपनी जिम्मेदारी

अब अपनी है बारी

अपने जज्बातों को विराम दो।

जीत हमारी पक्की है

अनुशासन का साथ दो

कोरोना मिट जाएगा

देश की अपने जीत हो।

 

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