श्री जयेश वर्मा
(श्री जयेश कुमार वर्मा जी बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता काश मैं गिलहरी बन आता…)
☆ कविता ☆ काश मैं गिलहरी बन आता… ☆ श्री जयेश वर्मा ☆
जब भी मौसम बदलता
मुझे आती तुम्हारी याद
काश, मैं गिलहरी बन जाता
आता तुम्हारे पास…
मैं जीता तुम्हारे सन्नाटे को
जीता तुम्हारे दर्द को, मन की कसक
पूछता आकर तुम्हारे पास
तुम्हारे हाल…
जब तुम घर के आंगन में बांटती
अपने मन का सन्नाटा,
घर की बगिया में फूलों में, पौधों में
और वृक्षों की डालियों में,
तभी मैं बन आता गिलहरी सा…
उतरता उस हरे भरे वृक्ष से धीरे-धीरे
तुमको देखता, तुम देखती मुझे..
खुश होती मुझे देखकर,
मैं आता, हाथ रुक जाता,
तुम्हारे पास तुम बढ़ाती अपनी हथेली
और उठा लेती मुझे, अपने चेहरे के पास..
मैं देखता….तुम्हारी आंखों को
और घबरा जाता उन आंखों की
असीम गहराई देखकर वेदना..
तुम मेरी आंखों में देखती और
समझने की कोशिश करती
मेरे मन की भाषा, जो तोड़ने आया है
तुम्हारा एकांत, उस समय
जो तुम्हारी हथेलियों में बैठा बैठा,
जी रहा ऊस वातायान को
ऊस वातावरण को..
तुम्हें तुम्हारा सन्नाटा,
मैं जीता जाता तुम्हें…
काश मैं आता
तुम्हारे पास रोज इसी तरह
तुम्हारा सन्नाटा बाटने रोज
मैं बन आता गिलहरी बन कर
एक बार छू लेता
तुम्हारे मन की छुअन को
जी लेता उन क्षणों को
उन पलों को एक बार
तुम्हारे साथ
काश मैं बन आता, गिलहरी बन
फिर एक बार
तुम्हारे पास, तुम्हारे पास
क्योंकि और कोई रास्ता नहीं
तुम्हारे पास आने का मेरे पास
काश मैं गिलहरी बन कर आता
तुम्हारे पास तुम्हारे पास…
© जयेश वर्मा
संपर्क : 94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
मो 7746001236
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈