डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ नदी ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

मैं नदी हूँ

कल-कल बहता जल ही मेरा परिचय है

मैं बने बनाये हुये

रास्तों पर नहीं चलती

 

मुझे आता है राह बनाने का हुनर

मेरा टेढ़ा मेढ़ा और लम्बा है सफ़र

 

मैं नदी हूँ

मेरा स्वभाव है ख़ामोश रहना

निरंतर बहना…निरंतर चलना

मैं राह के पत्थरों से,चट्टानों से

टकरा के गुज़र जाऊँगी

सूखी धरती मुस्कुरायेगी

मैं जिधर-जिधर जाऊँगी

 

मेरे अपने हैं उसूल

मैंने महकायीं फ़स्लें ,खिलाये हैं फूल

मुझे रोकने की ज़िद न करो

मुझे मोड़ने की ज़िद न करो

 

मेरी आज़ाद फ़िक्र ने

पाबंदियाँ क़ुबूल न कीं

जो बरखा रुतों ने नेमतें बख़्शीं

वो मैंने कभी फ़ुज़ूल न कीं

 

मैं हर पेड़ से कह रही हूँ

मैं  निस्वार्थ  बह  रही  हूँ

मुझमें प्रवाहित हैं मुहब्बत के पुष्प,आशाओं के दीप

मेरा अपना है रंग, मेरी अपनी है रीत

 

मुझमें सम्मिलित होती जा रही हैं

बहुत सी दिशायें,

मुझसे खेलती हैं

 बहुत सी हवायें

मुझमें डूबती जा रही है

डूबते सूर्य की लाली

मुझे छू रही है झुक कर

नर्म पेड़ की डाली

 

मैं तृप्त करती जा रही हूँ

अहसास की ज़मीं

मेरी मंज़िल है दूर कहीं

 

मैं चलते चलते समा जाऊँगी

एक दिन

प्रेम के महासागर में

जीवन प्रवाह की तरह है इसके रास्ते में भी आती  हैं दुखों की चट्टानें, समस्यायों के पर्वत, अगर हमारे धैर्य की धार तेज़ हो तो यह  टूट जाती हैं चट्टानें,धूल हो जाते समस्यायों के पर्वत…बस लक्ष्य बड़ा हो, दिशा सही हो…जुनूँ हो तो नदी पहुँच ही जाती है – महासागर तक…।

© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_printPrint
1 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments