प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ गीत – “गाँव की बेटी-दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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बेटी भाती गाँव की,जो गुण से भरपूर।
जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।।
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बेटी प्यारी गाँव की,प्रतिभा का उत्कर्ष।
मायूसी को दूरकर,जो लाती है हर्ष।।
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बेटी जो है गाँव की,करना जाने कर्म।
हुनर संग ले जूझती,सतत् निभाती धर्म।।
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गाँवों की बेटी सुघड़,बढ़ती जाती नित्य।
चंदा-सी शीतल लगे,दमके ज्यों आदित्य।।
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कुश्ती लड़ती,दौड़ती,पढ़ने का आवेग।
गाँवों की बेटी लगे,जैसे हो शुभ नेग।।
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बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम।
जिसके खाते काम के,हैं अनगिन आयाम।।
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खेतों से श्रम का सबक,बढ़ना जाने ख़ूब।
गाँवों की बेटी प्रखर,होती पावन दूब।।
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करती बेटी गाँव की,अचरज वाले काम।
मुश्किल में भी लक्ष्य पा,हासिल करती नाम।।
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गाँवों को देती खुशी,रचती है सम्मान।
बेटी मिट्टी से बनी,रखती है निज आन।।
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राजनीति,सेना गहे,कला और विज्ञान।
गाँवों की बेटी करे,पूरे सब अरमान।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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