प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ गीत – हे ! गिरिधर गोपाल ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।।
राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।
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प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है।
भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।।
प्रेम, प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ। ।
राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।
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अंधकार की बन आई है, बेवफ़ाओं की महफिल।
शकुनि फेंक रहा नित पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।।
अब राधाएँ डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ।
राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।
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आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, पीड़ा का मेला है।
कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला है।।
प्रीति-नेह को अर्थ दिलाने, मंगलगान सुनाओ।
राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।
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गौमाता की हुई दुर्दशा, भटक रहीं राहों में।
दूध-दही, जंगल, नदियाँ, गिरि, बिलख रहे आहों में।
आकर अब तो प्रकृति सँभालो, पांचजन्य बजाओ।
राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।
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दु:शासन, दुर्योधन अनगिन, द्रोपदियाँ बेचारी।
पार्थ नहीं, नहिं चक्र सुदर्शन, हर नारी है हारी।।
हे नटनागर ! रासरचैया, अग्नि-ज्वाल बरसाओ।
राधारानी को संग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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