श्री कुमार जितेन्द्र
(आज प्रस्तुत है श्री कुमार जितेंद्र जी की एक समसामयिक कविता “गुनहगार कौन? ”। )
☆ गुनहगार कौन? ☆
इंसान के कुकर्म से, धरा हो गई वीरान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
मशीनों के छेद से, धरा हो गई हैरान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
दौड़ – भाग छोड़ कर, घर में कैद हो गया इंसान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
परिवार की अपनों से, अब हो रही है पहचान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
कचरे का ढेर लगा के, अंधा हो गया इंसान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
भूखे – प्यासे तड़प रहे हैं, देख रहा है इंसान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
हवाओं में जहर घोल के, छिप गया इंसान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
कपड़े से मुह छुपाकर, घूम रहा इंसान,
हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?
© कुमार जितेन्द्र
साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)
मोबाइल न. 9784853785