सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

☆ चलो….अब भूल जाते हैं ☆

(प्रस्तुत है सुश्री मालती मिश्रा  जी  की  एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता।)

 

जीवन के पल जो काँटों से चुभते हों

जो अज्ञान अँधेरा बन

मन में अँधियारा भरता हो

पल-पल चुभते काँटों के

जख़्मों पे मरहम लगाते हैं

मन के अँधियारे को

ज्ञान की रोशनी बिखेर भगाते हैं

चलो!

सब शिकवे-गिले मिटाते हैं

चलो….

सब भूल जाते हैं….

 

अपनों के दिए कड़वे अहसास

दर्द टूटने का विश्वास

पल-पल तन्हाई की मार

अविरल बहते वो अश्रुधार

भूल सभी कड़वे अहसास

फिर से विश्वास जगाते हैं

पोंछ दर्द के अश्रु पुनः

अधरों पर मुस्कान सजाते हैं

चलो!

सब शिकवे-गिले मिटाते हैं

चलो….

सब भूल जाते हैं….

 

अपनों के बीच में रहकर भी

परायेपन का दंश सहा

अपमान मिला हर क्षण जहाँ

मान से झोली रिक्त रहा

उन परायेसम अपनों पर

हम प्रेम सुधा बरसाते हैं

संताप मिला जो खोकर मान

अब उन्हें नहीं दुहराते हैं

चलो!

सब शिकवे-गिले मिटाते हैं

चलो…..

सब भूल जाते हैं…..

 

©मालती मिश्रा ‘मयंती’✍️
दिल्ली
मो. नं०- 9891616087
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drarun asolkar

सुंदर…????

मुकेश गोयल 'किलोईया'

बहुत बढ़िया।

राकेश प्रीतम

बेहतरीन

स्वामी अगेह भारती

सुनदर