श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल
(युवा साहित्यकार श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल जी लखनऊमें पले बढ़े और अब पुणे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। आपको बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी कविताएं लिखने का शौक है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता जब तुम नदी बन जाओगी।)
☆ कविता ☆ जब तुम नदी बन जाओगी ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆
जब तुम नदी बन जाओगी
और जब तुम नदी बन जाओगी
तब तुम्हे महसूस हो जायेंगी
वो हज़ारों छोटी बड़ी मछलियां,
जो तैर रही हैं तुममे
महसूस होंगी तुम्हें टकराती हुई
और फिर टूटती हुई चट्टानें
और जब तुम नदी बन जाओगी
तुम्हे पता चलेगा तुम्हारे वेग का।
कही अपनी चंचलता का एहसास होगा
और कहीं अपनी गहराई का।
और जब तुम नदी बन जाओगी
तब भी याद रखना, उन बादलों को
उन हिम खंडों को जो तुम्हे जीवन देने के लिये मिट गए
याद रखना उन सभी कणों को
जो निस्वार्थ बह चले तुम्हारे साथ
और जब तुम नदी बन जाओगी
वो आएंगे तुम्हारे पास
अपनी प्यास बुझाने, अपने पाप धोने
और कभी बस किनारे पे वक़्त गुजारने
आसान नही होगा
पर मुझे पता है
तुम एक दिन नदी बन जाओगी।
© केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल
पुणे मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
एक निरंतर चलने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है, नदी का बनना। निरंतर बहती हुई जलधारा है नदी का जीवन, जिसके साथ साथ चलता है बनने बिगड़ने का क्रम, और तभी तो जीवन का निहितार्थ समझाते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं ——-
जिय बिनु देह ,नदी बिनु बारी।
तैसी नाथ पुरुष बिनु नारी।।
आज मानव ने निहित स्वार्थ सिद्ध करने के लिए नदी की जीवन धारा ही छीन लिया है बांध बना कर।