श्री रामस्वरूप दीक्षित
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामस्वरूप दीक्षित जी गद्य, व्यंग्य , कविताओं और लघुकथाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। धर्मयुग,सारिका, हंस ,कथादेश नवनीत, कादंबिनी, साहित्य अमृत, वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष। हम समय समय पर आपकी सार्थक रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करते रहते हैं।
☆ कविता – जिंदगी की शाम ☆श्री रामस्वरूप दीक्षित ☆
कोई नहीं जानता
(और जानता भी हो
तो कोई फर्क नहीं पड़ता )
कि कब और किस गली में
डूब जाए
आपके हिस्से का सूरज
कब सूख जाए
आपके भीतर की नमी
सांसों की आवाजाही के रास्ते
कब जल उठे लाल बत्ती
और उसे हरा होते हुए
न देख पाएं आप
और कम हो जाए
जनगणना विभाग की सांख्यिकी में
आबादी का एक अंक
शेषनाग को मिले
थोड़े से ही सही
पर कम हुए वजन से राहत
खाली हो जाए
बरसों बरस से
बेवजह सा घिरा हुआ
धरती का एक कोना
घर में नकारात्मक ऊर्जा फैलाता
एक अनुपयोगी सामान
हो जाय घर से बाहर
और घर की ऊब हो कुछ कम
तो बेहतर होगा
जाने से पेशतर
पूर्वाग्रहों और कुंठाओं की
घृणा और ईर्ष्या द्वेष की
फफूंद लगी गठरी
झूठ के झंडे
और तृष्णा की चादर
सम्मान के कटोरे
और यश की थाली
इन सबको दे दी जाए
जल समाधि
मित्रों की शुभकामनाओं
उनसे मिले प्रेम
और उनके साथ की
बेशकीमती दौलत की
करते हुए कद्र
खुशी की चादर ओढ़
सोया जाए चैन से
उनकी यादों की महक से
सराबोर
आत्मा के बगीचे की क्यारी में
चहलकदमी करते
डूबते सूरज को देखना
और मिला देना उसी में
अपने भीतर की धूप
शाम को बना लेना है
अपनी अगली
सुनहरी सुबह
© रामस्वरूप दीक्षित
सिद्ध बाबा कॉलोनी, टीकमगढ़ 472001 मो. 9981411097
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बहुत ही विस्तृत फलक है। वजनदार कविता।