प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ दोहे – सुरक्षा-संदेश के ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

बढ़ती जब जनसंख्या, बढ़ता है तब भार।

हो जाती हर योजना, तब निश्चित बेकार।।

*

बढ़ता है जन भार जब, दुख पाता परिवार।

सभी तरह से देश में, फैले तब अँधियार।।

*

दोपहिया पर बैठ जब, एक साथ परिवार।

कहे सुरक्षा आ रहा, दुर्घटना का वार।।

*

ध्यान रखें जो वे रहें, सड़कों पर अनुकूल।

बिना कायदे जो रहें, चुभते उनको शूल।।

*

सड़कों पर खिलवाड़ तो, लेती जीवन लील।

 बहुत कीमती ज़िन्दगी, करो ज़रा तुम फील।।

*

लापरवाही त्याग दो, वरना तय है काल।

होगा तुमको हर कदम, वरना “शरद” मलाल।।

*

नियम सदा हित को रचें, उन्हें मान नहिं व्यर्थ।

डरो रोड कानून से, समझो उसका अर्थ।।

*

मन में धरकर जोश तुम, गँवा न देना होश।

वरना विधि या मौत तो, भर लेंगी आगोश।।

*

होगा जब सीमित यहाँ, हर इक का परिवार।

तभी प्रखर प्रतिकूलता, का होगा संहार।।

*

दोपहिया की नहिं अधिक, होती है औकात।

दो ही बैठेंगे अगर, बचे रहोगे तात।।

*

अर्थहीन गति-मति तजो, जाये वरना जान ।

 आंँसू की सौगात हो, बढ़े पीर का मान।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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