श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशित। गीत कलश (छंद गीत) और निर्विकार पथ (मत्तसवैया) प्रकाशाधीन। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 350 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… नौतपा ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(नौतपा और उसके पश्चात की वेला पर आधारित) 

गरमी भीषण पड़ी, जेठ के  महीने अड़ी,

होते गर्म रात- दिन, नौतपा जलाता तन |

*

लू लपेटे फँसे चलें, जल बिन कैसे पलें?

सूरज प्रचंड ताप, आपत को सहे जन ||

*

बाहर को मत जाओ, घर रह सुख पाओ,

तपती है मरुभूमि, हुआ बुरा हाल मन‌।

*

नौतपा पे सब हारे, सूखे नदी वृक्ष सारे,

योगिता काँपते पल, जल थल और वन ||

*

ओ बरखा रानी आओ, बदरा बनके छाओ,

प्यासी है धरती सारी, प्यासे सारे जलचर।

*

बूंदें बन बरसना, गर्मी में है जीव घना,

तीव्र घनघोर जल, शीतल ठंडक कर।।

*

कृषक देखता राह, नव हो जीवन चाह,

चलें कब खेत पर, बनकर हलधर।

*

सौंधी माटी की महक, खत्म देह की दहक,

वृक्ष को लगायें सभी, स्फुरित हो बीज  हर।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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