डॉ प्रेरणा उबाळे
☆ कविता – भीड़ के अभिभावक ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆
☆
भीड़ में चलते हैं
बहुत अकेले होते हैं
*
जीते सबके खातिर
सोचते कमाते लुटाते
अपनों के खातिर
प्रेम बरसाते
बस सभी के लिए l
*
सादगी कपड़ों में
सहजता बातों में
सरलता आँखों में
निश्चलता व्यवहार में
झरना बहता अखंड।
*
होठों की मुस्कान
छुपाता समंदर गहरा
कर्मठ कर्मरत
अखंड अविरत।
*
मारना पड़ता है
खुदको
भावनाओं को
संभलना पड़ता है
बारंबार l
*
प्राणों पर बन आए
तब भी
जिलाए रखती है जिंदगी
निखरती रहती है जिंदगी।
हो कोई भी क्षेत्र
रहना पड़ता है अडिग
नदी के द्वीप की तरह l
*
भीड़ में चलते हैं
बिल्कुल अकेले होते हैं
कार्य करने वाले –
कार्यकर्ता
अफसर
अध्यापक
नेता
*
हर ईमानदार में है मौजूद
वह अकेला
हर निष्ठावान में है मौजूद
वह अकेला
सबके साथ रहने वाला
है अकेला l
*
भीड़ का अभिभावक होना
नहीं है आसान
लहरें बाधाओं की
करनी पड़ती है पार।
पर
भीड़ साथ हो न हो
पूरे ब्रम्हांड का मिलता है
आशीष और दुलार l
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© डॉ प्रेरणा उबाळे
17 अगस्त 2024
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर, पुणे ०५
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