सुश्री अंजली श्रीवास्तव
(सुश्री अंजली श्रीवास्तव जी का ई – अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – मैं और मेरा घर।)
☆ कविता ☆ मैं और मेरा घर ☆ सुश्री अंजली श्रीवास्तव☆
जब मायके की ड्योढ़ी छोड़ कर,
कुछ दाने चावल के फेंके थे मैंने,
नैनों में एक प्यारे से अपने घर के,
तभी मधुर स्वप्न भी देखे थे मैंने!
पति गृह आ कर फिर मैंने अपने ,
नए घर को हृदय से अपनाया,
किन्तु मेरे इस हठी नए घर ने,
मुझको सदा ही समझा पराया!
जब दो हठी जन टकराते रहे,
तो आनंद बहुत ही आता रहा,
मैं घर पर अधिकार जताती रही,
वह हरदम मुझे ठुकराता रहा!
अब त्रियाहठ के आगे आखिर,
इस घर की जीत कहाँ संभव भला,
इस घर को हृदय बड़ा करके,
फिर मुझको भी अपनाना पड़ा!
© सुश्री अंजली श्रीवास्तव
मकान नम्बर-सी-767सेक्टर-सी, महानगर, लखनऊ – 226006
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Very nice
धन्यवाद?
बहुत ही सुंदर कविता?
धन्यवाद