डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’
(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, एक कविता संग्रह (स्वर्ण मुक्तावली), पाँच कहानी संग्रह, एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज ससम्मान प्रस्तुत है राजभाषा दिवस पर विशेष कविता हिन्दी। )
☆ कविता ☆ राजभाषा मास विशेष – हिन्दी ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆
संस्कृत की बिटिया लाडली
उर्दू की बहन हिन्दी
आन, बान और शान से पूरित
यह तो पगड़ी है माँ भारती की
चल पडी शान से…
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर
प्रभु को पुकारती
हिम्मत न हारकर
छाले पड़े, पर कतरा आँसू का
न बहाया कभी औरों के सामने
न बंदिशे न कोई रंजिशे
मत बन रास्ते का कंकड
बहने दें निर्मल प्रवाह को
निर्बाध्य हो संसार-सागर में
याद दिलाती भारतीय को
भारतीय होने की…
हर व्यक्ति की बनी पहचान
यह तो है प्यार की भाषा
यह तो है मीठी भाषा
खुशनुमा हो चल पड़ी
अपनों के भरोसे
मत तोड़ इसका भरोसा
लड़ रही अपनी बहनों से?
अपनी जगह बनाने के लिए
यही विडम्बना आँसू बहते
उसके नयनों से………
हो सुरक्षित अपनी जगह
तुम पर आँच न आने देगी
न कोई बैर अन्य भाषा से
अपनाती चली हर बोली-भाषा को
नोंच लेगी आँखें अगर….
अगर उठी किसी की तुम पर
गलती से भी अपराध न कर
अगर-मगर के चक्कर में न पड़कर
मात्र अपना हिन्दी को, प्रेम कर
अपने प्रेम पाश में बाँधकर
अपनी आगोश में भरकर
प्यार करने को तत्पर,
प्रेम-सागर में स्वीकार कऱ
मार डुबकी कर आदर
उमडा है साहित्य-सागर
गोते लगा, पा अलौकिक आनंद
दिल में फूटते गुब्बारे
देखते नज़ारा सुंदर हिंद का
हिंदी है भारत की भाषा
न तेरी या मेरी मात्र हिंदी
वरदहस्त है माँ सरस्वती का
बस, भाषा से प्रेम कर,
दिल की बात आई जुबां पर,
हिंदी है हिंदोस्तान की प्यार कर,
हिंदी है हिंदोस्तान की प्यार कर ।
©डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’
संपर्क: प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈