श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। फिर शुरुआत भी तो ऐसी ही कविता से होनी चाहिए, जैसे “रिटायरमेंट के बाद ”। हम श्री खापर्डे जी की चुनिंदा कवितायेँ समय-समय पर आपसे साझा करते रहेंगे। )
☆ रिटायरमेंट के बाद ☆
मैं आजाद हो गया हूं,
यह सोचकर बहुत खुश होता हूं
ना सुबह उठने की झंझट
ना पत्नी की खट-खट
ना खाने की लटपट
खूब लंबी तान कर सोता हूं
मै आजाद हो गया हूं
यह सोचकर बहुत खुश होता हूं
ना तो ट्रेन पकड़ने की भागमभाग
ना वो ट्रेनमे भीड़ के बीच सुलगती आग
ना वो नयी ड्रेस पर लगते तंबाकू और पान के दाग़
अब उस कड़वाहट को मुस्कराहट से धोता हूं
मै आजाद हो गया हूं
यह सोचकर खुश होता हूं
आफिस में टेलीफोन, मोबाइल की बजती घंटियां
टेबल पर छुट्टी की अर्जियां
स्टाफ की मनमौजी मनमर्जिंयां
अब इस टेंशन को चाय की चुस्कियों में उड़ाता हूं
मैं आजाद हो गया हूं
यह सोचकर बहुत खुश होता हूं
वो मोबाइल पर बास का नंबर देखकर थरथराहट
वो बात-बात पर बास की डांट से घबराहट
वो ट्रांसफ़र की धमकी भरी गुर्राहट
आज बेखौफ होकर बास को ससम्मान भिगोता हूं
मैं आजाद हो गया हूं
यह सोचकर बहुत खुश होता हूं
अब ना किसी से शिकायत
ना उनको तकरार है
एक हाथ में चाय
दूसरे में अखबार हैं
पास बैठी पत्नी की आंखों में
बेशुमार प्यार है
अब हर नई सुबह
नयी सोच को संजोता हूं
मैं आजाद हो गया हूं
यह सोचकर बहुत खुश होता हूं।
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588
धन्यवाद भाई, आप ने मेरी कविता को अपनी पत्रिका में स्थान दिया , हृदय से आभार. भविष्य में भी सहयोग की अपेक्षा रहेगी